इंदौर सुपरकॉप का तबादला बेवजह, बेफजूल
इंदौर। यूँ तो हर सफर कभी न कभी खत्म होता है लेकिन अगर वजह जायज़ हो तो मुसाफिर का जाना खलता नहीं है, लेकिन अगर सफर बीच मे ही बेवजह खत्म हो जाए तो दिल मे खलिश होना जायज़ है।
ठीक उसी तरह DIG हरिनारायणचारी मिश्रा का भी यू बेवज़ह तबादला पूरे इंदौर शहर की ख़लिश बन चुका है, पिछले दो वर्ष के कार्यकाल में उन्होंने शहर के लिए क्या कुछ नही किया, पूरी इंदौर पुलिस को एक मज़बूत टीम की तरह तैयार किया, अलग अलग अभियानों से शहर को गुंडा मुक्त किया, हत्या जैसे संगीन अपराधों का ग्राफ़ गिराया, आम जनता में विश्वास जगाया और सबसे महत्वपूर्ण वो सभी के लिये बेहद अप्रोचबल रहे इसीलिए जनता, पुलिस टीम व अन्य समाजसेवियों से वो लगातार जुड़े रहे जिससे उन्हें शहर की नब्ज पकड़ में आ चुकी थी।
इतना ही नहीँ, उन्होंने कई सालों से लंबित मामले भी अपनी टीम के साथ मिलकर खत्म किये और देश को पहली साइबर हेल्प लाइन भी दी, ऐसे अफ़सर को हटाना जो अपनी सभी जिम्मेदारियां बख़ूबी निभा रहा था किसी के गले नही उतर रहा।
अगर देखा जाए तो एव वरिष्ठ अफ़सर को शहर की समस्याएं और समाधान समझने में ही एक से दो साल लग जाते है और जब तक उस शहर की लगाम उसके हाथ मे आती है तो उसे फिर किसी नई जगज भेज दिया जाता है, फिर वापस वही सिलसिला शुरू होता है। मेरी बात चाहे बाकी पुलिस अधिकारियों से , जनता से, व्यापारियों से या अन्य पत्रकारों से हुई हो सभी ने एक सुर में इसे गलत बताया।
संदीप तेल हत्याकांड का बिल बेवजह उनके और SP अवधेश गोस्वामी, CSP पंकज दिक्सित ने नाम फटता हुआ दिखायी दिया जबकि हत्या के एक माह के भीतर ही हत्यारों को धर दबोचा गया व मुख्य षड्यंत्रकारी भी पकड़ के बेहद नज़दीक़ था।
इतनी दृढ़ता से काम करने के बाद भी यदि ऐसे अफसरों को अपनी योग्यता से हल्की ज़िम्मेदारी दी जाती है तो ये एक बहुत बड़ा प्रशन है कि क्या जनता सरकार बदलने के लिए वोट देती है या प्रशासन बदलने के लिए ?
डॉ सौरभ माथुर