कांग्रेस का कोई वकील नहीं पहुंचा सुप्रीम कोर्ट,कमलनाथ और स्पीकर को नोटिस जारी, सुनवाई कल पर टली, पढ़िए क्या लिखा है दायर याचिका में
भोपाल – आज सुनवाई के दौरान मध्य प्रदेश सरकार और कांग्रेस की ओर से कोई वकील सुप्रीम कोर्ट में हाजिर नहीं था. सुप्रीम कोर्ट ने मामले को कल सुनवाई के लिए टाल दिया.
सुप्रीम कोर्ट ने बीजेपी की अर्जी पर सीएम कमलनाथ, स्पीकर एनपी प्रजापति और राज्यसभा सचिवालय को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है.
नई दिल्ली: मध्य प्रदेश में सत्ताधारी कांग्रेस सरकार का तुरंत फ्लोर टेस्ट कराए जाने की मांग वाली याचिका पर अब सुप्रीम कोर्ट कल सुबह 10.30 बजे सुनवाई करेगा. आज इस मामले पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि विधानसभा के स्पीकर का पक्ष जाने बिना राज्य में फ्लोर टेस्ट कराने के आदेश नहीं दिया जा सकता. सुप्रीम कोर्ट ने बीजेपी की अर्जी पर सीएम कमलनाथ, स्पीकर एनपी प्रजापति और राज्यसभा सचिवालय को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है. ये नोटिस व्हॉट्सएप और मेल के जरिए भेजा जाएगा.
आज सुनवाई के दौरान मध्य प्रदेश सरकार और कांग्रेस की ओर से कोई वकील सुप्रीम कोर्ट में हाजिर नहीं था. इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को कल सुनवाई के लिए टाल दिया. बीजेपी की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि दूसरा पक्ष कोर्ट में इसलिए नहीं आया ताकि उन्हों एक दिन मिल सके. इसके बाद जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि हमें नोटिस जारी करना होगा.
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट में ये सुनवाई राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और नौ विधायकों की याचिका पर हुई. 9 बीजेपी विधायकों में गोपाल भार्गव, नरोत्तम मिश्रा, भूपेंद्र सिंह, रामेश्वर शर्मा, विष्णु खत्री, विश्वास सारंग, संजय सत्येंद्र पाठक, कृष्णा गौर और सुरेश राय शामिल हैं. याचिका में राज्य में सत्ताधारी कांग्रेस सरकार का तुरंत फ्लोर टेस्ट कराए जाने की मांग की गई थी.
दायर याचिका में क्या कहा गया है?
याचिका में आरोप लगाया है कि एमपी विधानसभा में बहुमत खो चुकी कांग्रेस की कमलनाथ सरकार फ्लोर टेस्ट को टालने की कोशिश कर रही है. याचिका में 2018 में हुए विधानसभा चुनाव से लेकर अब तक की सारी स्थिति बताई गई है. कहा गया है कि राज्य में बहुमत खो चुकी सरकार बहानेबाजी कर रही है. उसके कहने पर विधानसभा स्पीकर ने सत्र को 26 मार्च तक के लिए टाल दिया है.
सुप्रीम कोर्ट के कई पुराने फैसलों का भी हवाला याचिका में दिया गया है. कहा गया है कि 1994 में एस आर बोम्मई मामले के फैसले में सुप्रीम कोर्ट यह साफ कर चुका है कि सरकार का शक्ति परीक्षण विधानसभा के पटल पर होना जरूरी है. बाद में नबाम रेबिया, रामेश्वर प्रसाद, जगदंबिका पाल जैसे मामलों के फैसले में भी यही व्यवस्था दोहराई गई. पिछले 2 सालों में सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक और महाराष्ट्र में सरकार को 24 घंटे के भीतर विधानसभा में बहुमत साबित करने का आदेश दिया था. इस मामले में भी ऐसा ही होना चाहिए.