ये मानव इतिहास की सबसे बड़ी त्रासदी है जिसे हम साक्षात देख रहें हैं, ईश्वर के प्रकोप के सामने हमारी एक नहीं चल रही, उनकी इच्छा का आदर कीजिए, घर पर रहिए वरना विनाश निश्चित है !
विशेष सीरीज ' सत्य कथन ' - संपादक, डॉ सौरभ माथुर द्वारा
श्रीमद भगवद गीता, अध्याय 10 –
यद्यद्विभूतिमत्सत्त्वं श्रीमदूर्जितमेव वा।
तत्तदेवावगच्छ त्वं मम तेजोंऽशसंभवम्।।10.41।।
अर्थात – ।।10.41।। जो कोई भी विभूतियुक्त, कान्तियुक्त अथवा शक्तियुक्त वस्तु (या प्राणी) है, उसको तुम मेरे तेज के अंश से ही उत्पन्न हुई जानो।।
मित्रों, आप में से को कोई भी साधारण से थोड़ी सी भी अधिक समझ रखते होंगे तो वो भगवत गीता के ऊपर दिए गए अध्याय दस के इस श्लोक और इसके अर्थात को पढ़ के इस पूरे लेख का तात्पर्य ही समझ गए होंगे।
जो नहीं भी समझे उनके लिए मेरे आगे के लेख में सभी सवालों के जवाब मिल जाएंगे।
यह बताइए कि आज तक मनुष्य इतिहास में क्या कोई ऐसी महामारी फैली है जो पूरे विश्व के 95% से अधिक देशों में इतनी कम अवधि में फैल जाए ?
क्या आपने या किसी और ज्ञानी ने यह सपने में भी सोचा था कि अमेरिका जैसा सर्व शक्तिशाली देश इस महामारी से इतनी बुरी तरह पीड़ित होगा कि उसकी पूरी स्थिति ही उलट जाएगी और उसके सभी जीव वैज्ञानिक भी इस स्थिति में कुछ नहीं कर पाएंगे ?
क्या अभी तक मानव जाति के इतिहास में कोई ऐसा पल आया कि जहां पूरे विश्व के अधिकतर मानवों को एक ही स्थान पर कई दिनों तक ठहरना पड़े और वह भी एक साथ?
क्या आज तक कभी ऐसा हुआ कि कोई महामारी जितनी तेजी से इंसानों में फैली हो उतनी ही तेजी से उसके जानवरों में फैलने का खतरा भी मंडरा रहा हो और वैज्ञानिक कम से कम डेढ़ साल तक का समय मांग रहें हों उसकी दवा की खोज करने के लिए ?
जी हां, हम और आप मानव इतिहास का एक ऐसा पल जी रहे हैं जिससे अगर गौर से देखें और समझे तो इसमें ईश्वर का चमत्कार सभी के समक्ष है अथवा प्रमाणिक रूप से पूरी पृथ्वी को प्रकृति ने यह मानने पर मजबूर कर दिया है की जब वह रुष्ट होगी तो उसके आगे किसी की एक न चलेगी अब चाहे वह सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका हो या चीन हो इटली हो, उसका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। दुनियाभर के करोड़ों लोगों ने ऐसा पहली बार सुना और देखा है कि जहां स्तिथि हर घंटे हाथ से फिसलती जा रही हो और कोई कुछ ना कर पा रहा हो तो यह समझ लीजिए यह उस परमपिता परमेश्वर की इच्छा के बिना हो ही नहीं सकता, जब से यह पृथ्वी बनी है तब से अभी तक का इतिहास उठाकर देख लीजिए जब जब प्रकृति से भारी छेड़छाड़ की जाती है या उस प्रकृति को एक नई शुरुआत करनी होती है तब वह बड़े से बड़े जीव को भी मिट्टी में मिला देती है लेकिन इस बार समस्या यह है की घमंडी इंसान इस बात को मानने को तैयार ही नहीं हो रहा है इसीलिए बाकी लाखों लोगों की तरह मैंने भी आज की परिस्थितियों का जवाब अपने धर्म ग्रंथों में ढूंढने की कोशिश की, साथ ही खोजने का प्रयास किया भगवान के उस वाक्य को जिसमें उन्होंने साक्षात कहा है कि जब कोई भी शक्तिशाली प्राणी जिस पर किसी का बस नचले तू उसको मेरे ही तेज से जन्मा समझ।
श्रीमद्भागवत गीता में अध्याय 10 में श्लोक 10.41 में भगवान श्री कृष्ण ने अध्याय 10 में समझाए गए अपने सभी रूपों को सम्मिलित करते हुए अर्जुन को यह समझाया हे अर्जुन इस प्रकृति में जो भी सर्व शक्तिशाली है, जो भी अपार समर्थ युक्त प्राणी है उसे तू मेरे ही तेज से जन्मा जान।
इसी श्लोक को हम आज के परिपेक्ष में देखें तो विश्व में फैला ये वायरस भी ऐसा लग रहा है कि भगवान कृष्ण की इच्छा पूर्ति के लिए ही धरती पर जन्मा है, जहां विश्व के अधिकांश मनुष्य अपने भोग विलास के लिए किसी को नहीं छोड़ते, जिन मनुष्यों ने अपने निजी स्वार्थ के लिए प्रकृति को सर्वथा छलनी कर दिया है उन मनुष्यों को मानो एक सबक सिखाने का समय आ गया और इन घमंडी मनुष्यों के लिए ईश्वर ने ऐसा अति सूक्ष्म प्राणी पृथ्वी पर उत्पन्न किया जिसने बड़े-बड़े विद्वानों को, बड़े-बड़े शक्तिशाली राजाओं शासकों को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया हो, वह तत्व ईश्वर की इच्छा के बिना उत्पन्न हो ही नहीं सकता।
मतलब यह की ईश्वर ने प्रकृति को संतुलित करने का कार्य बहुत तेजी से आरंभ कर दिया है, मात्र 16 दिनों में गंगा व यमुना स्वच्छ हो चुकी है, यह वही नदिया है जिनकी सफाई के लिए सरकारों ने करोड़ों रुपए खर्च कर दिए लेकिन तब भी यह नदियां लेश मात्र भी साफ नहीं हो पाए किंतु आज मात्र 16 दिवस में ही यह अपने आप ही इतनी साफ हो गई जितनी अब तक मनुष्य की सालों की मेहनत से भी नहीं हुई थी।
मात्र इन 16 दिनों में पूरे विश्व से प्रदूषण इतना कम हो गया कि कई 100 किलोमीटर की पहाड़ियां इस साफ-साफ दिखने लगे, जंगलों में कई वर्षों बाद प्राणी मात्र जानवरों में इतनी शांति दिखाई दी मानो प्रकृति अपने आप को वापस सहेजने लगी हो।
यह सब महज कुछ ही दिनों में हो गया है और देश के बड़े बड़े साइंटिस्ट आने वाले डेढ़ साल तक इसकी दवा बनाने के लिए कम से कम समय मांग रहे हैं, जब इतना कुछ ईश्वर की इच्छा से हो रहा है तब आप ही बताइए की ईश्वर की इच्छा के विरुद्ध अपने घर से बाहर जाने पर आप बच जाएंगे ?
नहीं, इस शक्ति का निरादर करने पर आप अधिक दिन बची नहीं पाएंगे इसीलिए अपना घमंड और अज्ञान त्याग कर आज की परिस्थिति को ईश्वर की तीव्र इच्छा से ही निर्मित जाना मानकर अपने आप को किसी भी हालत में लक्ष्मण रेखा पार मत करने दीजिए अन्यथा इस बार पृथ्वी पर कोई राम भी नहीं है जो रावण के कोप से आपको बचा पाए, बाकी यदि आपका काल आपको विवश कर रहा है तो ईश्वर आपकी आत्मा को शांति दे।