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इंदौर

कॉर्न फेस्टिवल छिंदवाड़ा 15-16 दिसम्बर : पॉप कॉर्न के अलावा भी बहुत कुछ है मक्का

इंदौर – मक्के की रोटी और सरसों के साग का स्वाद तो सबको पता है लेकिन यह जानकारी कम लोगों को पता है कि मध्यप्रदेश में सबसे ज्यादा मक्के का उत्पादन छिंदवाड़ा जिले में होता है। छिन्दवाड़ा अब कॉर्न सिटी के रूप में पहचाना जाता है।

छिंदवाड़ा के मक्का उत्पादक किसानों की मेहनत कॉर्न फेस्टिवल 2019 में दिखाई देगी, जो 15 और 16 दिसंबर को आयोजित किया जा रहा है। किसानों को मक्का प्र-संस्करण से संबंधित नई मशीनों, मक्का से खाद्य सामग्री बनाने वाली मशीनों और मक्का बाजार की जानकारी मिलेगी। साथ ही, उन्हें मक्का उत्पादन से जुड़े वैज्ञानिकों की बात सुनने और उनसे बात करने का मौका भी मिलेगा।

आज मक्का एक व्यावसायिक फसल बन चुका है। इसके उत्पादन का लाभ लेने के लिए मक्का आधारित प्र-संस्करण (कृषि प्र-संस्करण) इकाइयों का स्थापित होना जरूरी हो गया है। मक्का पोषक तत्वों से भरपूर होता है। इसलिये मक्का व्यंजन और मक्के से बनी खाद्य सामग्री का उद्योग लगाने की भरपूर संभावनाएँ बनी हैं। प्रदेश में मक्का उत्पादन 46 लाख मीट्रिक टन पहुँच गया है। अकेले छिंदवाड़ा जिले में मक्का का उत्पादन 6 लाख 23 हजार मीट्रिक टन से बढ़कर 12 लाख मीट्रिक टन हो गया है। मक्का का क्षेत्रफल 1 लाख 24 हजार हेक्टेयर से बढ़कर 2 लाख 95 हजार हेक्टेयर बढ़ गया है।

भारतीय मक्का अनुसंधान संस्थान लुधियाना के निदेशक डॉ संजय रक्षित का कहना है कि मध्यप्रदेश में मक्के का उत्पादन तो बहुत हो रहा है लेकिन मूल्य संवर्धन और प्र-संस्करण नहीं हो पा रहा है। यह अपेक्षा है कि यहाँ मक्के का प्र-संस्करण शुरू हो जाए जिससे मक्का उत्पादक किसानों को भरपूर लाभ मिल सके।

हरियाणा से आए किसान श्री कमल चौहान का कहना है कि मक्का फेस्टिवल का आयोजन एक अच्छी पहल है। ऐसे आयोजन से किसानों को नई-नई तकनीकी जानकारियाँ मिलती हैं, जिनका उपयोग वे अपने खेतों में करते हैं।

खाद्य प्र-संस्करण विशेषज्ञ डॉक्टर रामनाथ सूर्यवंशी का मानना है कि कृषि उद्योग से जुड़े बड़े उद्योगपतियों को मक्का आधारित प्र-संस्करण इकाई लगाने की पहल करना चाहिए क्योंकि इसका आर्थिक बाजार बढ़ रहा है। यह अब रोज़गार पैदा करने वाली फसल है। साथ ही किसानों की आय बढ़ाने में मददगार है।

आदिवासी महिला किसानों को मक्के के व्यंजन जैसे मक्का टोस्ट, बिस्किट बनाने का प्रशिक्षण देकर उन्हें बाजार उपलब्ध कराने की पहल करने वाले मध्यप्रदेश विज्ञान सभा के निदेशक डॉक्टर एस.आर. आजाद का कहना है कि मक्के के पोषक तत्वों के प्रति आम लोगों में जागरूकता बढ़ाने की जरूरत है। मक्का उत्पादन करने वाले छोटे किसानों को सीधे मक्का आधारित खाद्य प्र-संस्करण इकाइयों से जोड़ने की भी जरूरत है। छिंदवाड़ा इसके लिए आदर्श जिला है।

 न्यूट्री बेकरी

मुख्यमंत्री श्री कमल नाथ की सोच है कि किसानों को कृषि उद्यमिता से जुड़ने के मौके मिलना चाहिए, जिससे वे सिर्फ उत्पादन तक सीमित नहीं रहें बल्कि एक उद्यमी के रूप में भी सामने आएं। मुख्यमंत्री की इस सोच के अनुरूप छिंदवाड़ा जिले के तामिया विकासखंड में आदिवासी महिलाओं ने न्यूट्री बेकरी की स्थापना कर खुद को आर्थिक रूप से आत्म-निर्भर बनाने में सफलता हासिल की है।

न्यूट्री बेकरी यानी पोषक तत्व से भरपूर खाद्य पदार्थ बनाने की बेकरी। इससे जहाँ एक ओर पोषण पर सकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है, वहीं दूसरी ओर इससे जुड़ी आदिवासी महिलाएँ आर्थिक रूप से आत्म-निर्भर भी बन रही हैं। तामिया में अब चार न्यूट्री बेकरी यूनिट चल रही है। एक-डेढ़ हजार रुपए महीना कमाने वाली महिलाएँ अब 4 से 5 हजार रुपए महीना कमा रही हैं।

न्यूट्री बेकरी यूनिट शुरू होने से पहले यहाँ की आदिवासी महिलाएँ या तो खेती-बाड़ी में लगी रहती थीं या फिर लघु वनोपज इकट्ठा कर रही थी। खरीफ के समय काम की तलाश में वे आसपास के जिलों में चली जाती थी। मुश्किल से हजार-डेढ़ हजार रुपए महीना कमा पाती थी। उन्होंने मक्का, कोदो, कुटकी, ज्वार, बाजरा के साथ-साथ महुआ, आंवला, बेल जैसी वनोपज को लेकर बेकरी का काम शुरू किया। मक्के का बना टोस्ट और बिस्किट इस क्षेत्र में लोकप्रिय हो गए हैं। स्थानीय बाजार में महिलाएँ अपने उत्पादों की मार्केटिंग खुद करती हैं।

अब ये आदिवासी महिलाएँ दूसरे जिलों की महिलाओं को भी प्रशिक्षण देने के काबिल हो गई हैं। तामिया के हर्ष दिवारी गाँव के रागिनी स्व-सहायता समूह की सदस्य समोका बाई ने सात दिन का बेकरी प्रशिक्षण लिया। वे बताती है कि कैसे उन्होंने बेकरी में काम आने वाली मशीनों के बारे में जाना और कैसे मक्का टोस्ट बनाना सीखा। गुणवत्ता, लागत और मार्केटिंग के बारे में भी समझा। ऐसे ही सुमरवती बाई मटकाढाना गाँव के दुर्गा स्व-सहायता समूह की सदस्य हैं। उन्होंने मक्का टोस्ट बनाना सीखा। उनका समूह छोटी भट्टी का उपयोग कर टोस्ट बनाकर बाजार में बेच रहा है। मार्केटिंग में रुचि रखने वाली सालढाना (बागई) गाँव के राधाकृष्णा स्व-सहायता समूह की सदस्य सरोज बाई ने अब सबके साथ मिलकर व्यवसाय शुरू कर दिया है।

न्यूट्री बेकरी की सफलता को देखकर कई सरकारी विभागों एवं स्वयंसेवी संस्थाओं ने इसमें दिलचस्पी जाहिर की है। राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन, महिला-बाल विकास विभाग की तेजस्विनी, वन विभाग और चाय इंडिया (मध्यप्रदेश चेप्टर) ने न्यूट्री बेकरी की स्थापना में मदद के लिए संपर्क किया। तेजस्विनी ने मंडला जिले में दो बेकरी स्थापित कर ली है और दो की तैयारी चल रही है।

मक्का ऐसे बनी व्यावसायिक फसल

मक्के का उपयोग चार प्रकार से होता है। इसका पशु आहार विशेषकर पोल्ट्री फीड बनता है। पोल्ट्री उद्योग बढ़ने के साथ ही पोल्ट्री फीड की मांग बढ़ी है। कॉर्न फ्लेक्स जैसी लोकप्रिय खाद्य सामग्री बनती है। कॉर्न फ्लेक्स अब सुबह के नाश्ते में शामिल हो गया है। अन्न के रूप में भी इसका सेवन किया जाता है और औद्योगिक उपयोग होता है। कम पानी और कम लागत में अच्छी फसल हो जाती है। जलवायु परिवर्तन के खतरों को सह लेती है। मक्का पोषक तत्वों से भरपूर होता है। इसमें 71 प्रतिशत स्टार्च, 9 से 10 प्रतिशत प्रोटीन, 4 से 45 प्रतिशत फैट, 9 से 10 प्रतिशत फाइबर, 2 से 3 प्रतिशत शुगर और 1.4 प्रतिशत मिनरल होता है।

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