छोटी चूक कीमत भारी
ढाई हजार सैनिक कौन से भरी बसों का काफिला देश के सबसे खतरनाक हाईसिकुरिटी झोन से गुजर रहा है,उन बसों में सवार सैनिकों की रक्षा के लिए काफिले के आगे बीच में या पीछे एक भी विस्फोटक रोधी राडार वाहन या लैंड माइंस को जांचने वाले कोई भी वहां से पहले नहीं निकलता या साथ में नहीं चलता है इसके साथ ही जब सैनिक कों के वाहन का काफिला गुजर रहा होता है जो विस्फोट से भरी कार काफिले के साथ में चल रही है या सामने से आ रही है या पहले से ही विस्फोटक सामग्री से भर कर खड़ी कर दी गई है और जैसे ही सैनिकों के वाहनों का काफिला वहां से गुजरा रिमोट के द्वारा उड़ा दिया हो।यहाँ ये जांच के पहलु होने चाहिए। और विस्फोट होते ही आतंकवादियों ने गोलियां चलाना चालू कर दी सैनिकों की बसों पर एक सैनिक सैंडल लेकर अपना आधा शरीर बस से बाहर निकाल कर छत पर से चारों और निगरानी करते हुए चलता है या उनके काफिले के बीच आगे पीछे जीप,ट्रक में जिन्हे बख्तरबंद कहते हैं वह चलते हैं क्या उन्हें यह सब मांजरा ,आतंकवादी, कार और उनकी संदिग्ध गतिविधियों विस्फोट का शिकार हुई बस के पहले व बाद मे चल रहे सैनिक वाहनों के चालकों सवार सैनिकों तथा काफिले के साथ मे चल रहें अधिकारियों को नहीं दिखाई दी।ये भी जाँच का विषय होना चाहिए ।
काफिले में शामिल सैनिक असामयिक मृत्यु को प्राप्त हुए हैं उन्हें सरकार शहीद घोषित कर देश के लिए हुऐ शहीद को जो सम्मान दिया जाता है दे रही है। हमें इससे कोई गिला शिकवा नहीं है लेकिन इन सैनिकों की अकारण सरेराह हत्या की गई है और इस हत्याकांड में पड़ोसी मुल्क और उसके समर्थक आतंकवादी दस्ते जिसको सारा विश्व जानता है ने अपनी जिम्मेदारी ली है तो क्यों ना हम इस कांड की जांच हत्या के तरीके से करें और इस में हो सकता है कि कोई गद्दार भी निकले जिसने यह सब जानकारी उपलब्ध कराई हो इस पुलवामा कांड की जांच इस तरीके से की जानी चाहिए।
जिस दिन यह कायराना कृत्य किया गया देश ही नहीं विदेशों में भी 14 फरवरी वैलेंटाइन डे के रूप में मनाया जा रहा था देश के सभी होटल रेस्ट्रां पब पिकनिक स्पॉट कॉफी हाउस सिनेमाघर सभी जगह जश्न का माहौल था
और मैं यहां अफसोस के साथ विशेष रूप से तथाकथित देश प्रेमियों का शुक्रिया करना चाहता हूं धन्यवाद करना चाहता हूं शुक्रिया अदा करना चाहता हूं जिन्होंने उसी दिन रिलीज हुई एक फिल्म की कमाई को 18 करोड़ तक पहुंचा दिया।
शोक था दुख था चूल्हा नहीं जला था तो सिर्फ उस सैनिक के परिवार में जो अब इस दुनिया में नहीं था।
बाकी तो सब जश्न मनाने में मग्न थे ।क्यों नहीं उसी वक़्त उसी समय सारे कार्यक्रम निरस्त कर दिए गए, सिनेमाघर बंद क्यो नहीँ हो गए, होटल ,पब ,रेस्ट्रां ,बाजार बंद क्यों नहीं हुए ?
सिर्फ और सिर्फ सोशल मीडिया पर प्रोफाइल पिक्चर बदलने, मोमबत्ती जलाने, तिरंगा झंडा लहराने, विदेशी मुल्क को मुर्दाबाद करने और उसका पुतला व झंडा जलाने तक देश भक्ति दिखी है।
यदि सही में देश में शोक है आपने देशभक्ति और सेना का समर्थन कर उसका मनोबल बढाना चाहते हैं तो दिल्ली की सरकार और उसके नुमाइंदों और महामहिम सहित सेना प्रमुखों से यह मांग की जानी चाहिए कि सेना को खुली छूट दी जाए और इन आतंकवादियों का जो आश्रय दे पनाह दे उनके सामने खड़ा हो पहले उनको गोली मारो । मौत दहशत का कारण होगी आतंकी और पनाहगार दोनों के लिए ।
कोई भी आतंकवादी समर्थित संगठन या उनके लिए बात करने वालों को देश मे मिलने वाली सारी सुविधाएं बंद कर दी जाए।उन पर देश द्रोह के मुकदमे चलाए जाऐ।उनकी पैरवी करने वाले लोगो राजनैतिक दलो को बैन कर दिया जाऐ।
धर्म के नाम ,सेवा के नाम पर चल रहे शिक्षा और परमार्थ के संस्थाओ को बन्द करो।विदेश से मिलनें वाली सहायता भी बंद हो ।
जयहिन्द
उन्हें जिन्दा नहीं पकड़ना या गिरफ्तार नहीं करना है सिर्फ शूटआउट।
और अभी मौका है सविधान को भंग कर पूरे देश में एक कानून लागू कर देना चाहिए
अटक से लेकर कटक तक कश्मीर से कन्याकुमारी तक सिर्फ एक कानुन।
राजेश अग्निहोत्री