देवास नाका घूमने निकले युवक नेपाल भूटान तक पहुंच गए, शहीदों के घर जाकर पूछ रहे उनकी परेशानी
इंदौर – कश्मीर से कन्याकुमारी के लिए देश के अलग अलग प्रदेशो के युवाओं द्वारा शहीदों के हालतों को जाने के लिए और पर्यावरण की जागरूकता के लिए साइकल रैली का आयोजन किया जा रहा है यह रैली इन्दौर पहुची और यहां से अपने अगले पड़ाव के लिए निकली।
देवास नाका तक घूमने निकले दो युवक साइकिल से भूटान और नेपाल पहुंच गए। पांच महीने से चल रही उनकी यात्रा अभी भी जारी है। अब वे एक बड़ी साइकिल यात्रा में शामिल हो गए हैं। ये युवक शहीदों के घर जाकर उनकी परेशानियों को जान रहे हैं। हर प्रदेश की राजधानियों से गुजरकर कन्याकुमारी पहुंचेंगे। इस दौरान बंगाल में लोगों की भीड़ ने उन्हें बच्चा चोर समझकर घेर लिया। इंदौर में रहने वाले सुरेश सोलंकी और पीयूष महाजन साइकिल से भूटान और नेपाल तक घूम आए। दोनों ने 7 जुलाई को इंदौर से यात्रा शुरू की है। दोनों पहले दिन देवास नाका घूमने निकले थे और अचानक मूड हो गया कि आगे चलेंगे। घूमते-घूमते ग्वालियर-आगरा होते हुए मथुरा-वृंदावन पहुंचे। दो दिन रुकने के बाद गोरखपुर से नेपाल और फिर बिहार आए। दोनों ने बताया कि बिहार की राम नगर पुलिस ने उन्हें मेहमान मानकर खातिरदारी की, लेकिन पश्चिम बंगाल के क्रांतिनगर में 40 से ज्यादा लोगों ने दोनों को बच्चा चोर समझकर घेर लिया और मारपीट पर उतारू हो गए। तभी एक युवक ने पुलिस को फोन लगाकर बुला लिया।
भूटान बॉर्डर पर पहुंचे तो वहां भी लोगों ने धमकाया। गालियां दी और कहा कि चोरियां करने आए हो। बॉर्डर पर दोनों को रोका और कहा कि वहां सिर्फ गियर वाली साइकिल ही जा सकेगी। इस कारण दोनों ने बॉर्डर पर साइकिल खड़ी की और लोकल बस से दो दिन भूटान यात्रा की। वही बताया जब वे सिक्किम के कलिंगपोंग पहुंचे तो वहां एक पुलिसकर्मी ने रोका। बोला कि तुम मध्यप्रदेश से चोरी करने के बाद यहां आए हो। घंटेभर सख्ती से पूछताछ के बाद जब दोनों ने परिवार वालों से बात कराई तो पुलिस ने उन्हें कहा कि ऊपर पहाड़ी पर जाओ। जब वे रात को रुकने के लिए पहाड़ी पर ऊपर पहुंचे तो सेना के जवानों ने रोक लिया। उन्हें आतंकी समझ दो घंटे तक कड़ी पूछताछ की। जब उन्हें यकीन हो गया कि वे यात्री हैं तो देर रात उन्हें छोड़ दिया।
इसी दौरान इन्दौर के रहने वाले दोनो युवको की यूपी के गाजीपुर के डॉ. सानंद सिंह मुलाकात हुई। और 2 अक्टूबर से शुरू हुई कश्मीर से कन्याकुमारी तक शहीदों के सम्मान और पर्यावरण की साइकिल यात्रा में वह दोनो युवक शामिल हो गए। वे लोग अब हर प्रदेश की राजधानियों से गुजरते हुए शहीदों के घर जा रहे हैं। शहीदों के बाद पूरी राशि उनकी पत्नियों को मिल जाती है और माता-पिता की कोई देखभाल नहीं करता है। वे शहीदों के परिजन की समस्याएं सरकार तक पहुंचाएंगे।और इसके लिए कश्मीर से कन्याकुमारी तक जितने भी शहीद के परिजन मिले उनके परिजनों से मुलाकात की ओर जितनी भी स्मास्य सामने आई उसको देखकर आने वाले समय मे एक बड़ा कार्यक्रम कर प्रधानमंत्री तक यह बात पहुचाई जाएगी।
फ़िलहाल युवाओं का यह जत्था शहीदों और पर्यवारण में अपनी किस तरह भूमिका निभाता है यह देखने लायक रहेगा।