*फ़रवरी*
फ़रवरी, कैसे करूं बयां मेरे लिए क्या हो तुम
इक तमाम बरस की धड़कन हो तुम
जवां अदाओं की शोखी हो तुम
पेचीदा बाघी फितरत को गुदगुदाती मस्ती हो तुम
बसंत की गोद में पलता तोहफ़ा हो तुम
बेबाक इज़हार का बहाना तुम
ज़िक्र से महरूम इश्क़ भी तुम
बाक़ी महीनों का वजूद हो तुम
हवाओं में सर्गोशी का इत्र घोलती तुम
गुलाबी ठंड की हल्की हल्की धूप हो तुम
फ़रवरी, सांसों का कारवां और सबक भी तुम
दिल की रफ़्तार का बहाना हो तुम
रोमांस के किताब का पहला पन्ना हो तुम
फक़त वक्त का गुच्छा नहीं तुम
फ़रवरी, हर लम्हे का मायना हो तुम
दौड़ते ज़माने में संभलने की वजह हो तुम
थक जाऊं कभी जो सुकून का किस्सा हो तुम
तन्हाइयों में जो जान फूंक दे वो महफ़िल हो तुम
दिन रात की शक्ल में ढली उम्मीद का पिटारा हो तुम
फ़रवरी, कैसे बयां करूं मेरे लिए क्या हो तुम
इश्क़ मुहब्बत इबादत का दूजा नाम हो तुम
इंसान को इंसान बने रहने का मकसद भी तुम
फ़रवरी, ख्वाबों को देकर चहरा उसे संवारती हो तुम
बात बे बात मुस्कुराते रहने का सिलसिला हो तुम
उम्मीद का दामन थामे चलते रहने का सबब हो तुम
फ़रवरी, इतना जान लो बस सबसे अज़ीज़ हो तुम