इंदौर के देपालपुर में श्राद्ध पक्ष में भी मानते हैं अनूठा पर्व जिसमें पितरों की शांति के लिए घर के सामने टांगते हैं हाथ से बनाए चित्र
देपालपुर:-देपालपुर नगर सहित समूचे अंचल में इन दिनों लोक संस्कृति का पर्व संजा धूमधाम से मनाया जा रहा है। संजा पर्व किशोरवय की लडकिया मनाती है।श्राद्ध पक्ष की पूर्णिमा से सर्वपितृ अमावस तक मनाया जाने वाले संजा पर्व में अब आधुनिक रूप लेने लगा है। इस प्राचीन परम्परा में पहले लडकिया अपने अपने घरो की दीवारों पर 15 दिनों तक प्रतिदिन अलग अलग आकृतिया गोबर से बनाती थी,मगर समय के साथ साथ यह प्राचीन परम्परा भी अब धीरे धीरे लुप्त होती जा रही है पुरानी प्राचीन परम्परा को छोडकर लडकिया इस पर्व को आधुनिकता के रूप में ले आई है। लडकिया संजा तो बनाती है मगर अब गोबर के स्थान पर कागजो की बनी संजा दीवारों पर चिपका कर संजा पर्व मनाया जा रहा है
मान्यता है कि संजा का विवाह बचपन में ही हो गया था तथा उसे ससुराल वह माईके दोनों पक्ष का सुख नहीं मिल पाया था और वह अपने भाइयों से मिलने भी नहीं जा पाती थी इसलिए उसने चांद और सूरज को अपना भाई मानकर उनकी आकृति गोबर से दीवारों पर बनाकर उस से बात करती थी मालवा और निमाड़ क्षेत्र में यह पर्व कुंवारी युवतियों द्वारा अपनी शादी होने तक प्रत्येक वर्ष मनाया जाता है शादी होने के उपरांत इसका समापन किया जाता है। शाम होते ही गांव की गलियों में संजा माता के गीत सुनाई देते हैं । इन गीतों में भी पुराने गीतों के साथ साथ नए गीतों को भी लड़कियां गा रही है।
संझा बाई को छेड़ते हुए लड़कियां गाती हैं-
‘संझा बाई का लाड़ाजी, लूगड़ो लाया जाड़ाजी
असो कई लाया दारिका, लाता गोट किनारी का।’
इस दौरान संझा बाई को ससुराल जाने का संदेश भी दिया जाता है-
‘छोटी-सी गाड़ी लुढ़कती जाय,
जिसमें बैठी संझा बाई सासरे जाय,
घाघरो घमकाती जाय, लूगड़ो लटकाती जाय
बिछिया बजाती जाय’।
Shraadh Paksha in Depalpur is also consider a unique festival