इंदौर – एडवाइजरी संचालको की गिरफ़्तारी से पूरी एडवाइजरी उद्योग में भय का माहौल , रोज़ लगा रहे सेबी दफ्तर के चक्कर
संपादक डॉ सौरभ माथुर की विशेष इनसाइड रिपोर्ट
इंदौर – हाल ही में हुई चार बड़ी एडवाइजरी संचालक कंपनियों की गिरफ़्तारी से पूरे एडवाइजरी उद्योग में हड़कंप मचा हुआ है, जिसे देखो सेबी और थानों के चक्कर काट कर खुले हुए मामलों का निपटारा करने में जुटा हुआ है क्युकी उनके रातो की नींद उडी हुई है की कही अगला नंबर हमारा तो नहीं ?
वेज़2 कैपिटल के स्वप्निल प्रजापत, equicom के अखिलेश रघुवंशी , ट्रेड बिज़ के संतोष परिहार और सफल रिसर्च के सागर साहू को गत 4 जनवरी को तेलंगाना पुलिस की स्पेशल टीम इंदौर से गिरफ्तार कर ले गयी जिनके खिलाफ धोका धड़ी के कई मामले दर्ज थे , इस पूरे मामले की जानकारी तेलंगाना पुलिस ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करके देश के मिडिया के सामने राखी जो इस मामले को अपने आप में अब तक का सबसे बड़ा मामला बनाती है।
क्या है पूरी इनसाइड स्टोरी ? आपको बताते है :-
कंपनियों के पूर्व कर्मचारी भी निवेशकों को गुमराह करते है :
ऐसी कंपनियों में अक्सर ऐसा देखा गया है की जो पूर्व सेल्स कर्मी एक कंपनी छोड़ के दूसरी कंपनी को ज्वाइन करता है वह खुद अपने पूर्व ग्राहकों को नयी कंपनी में ग्राहक बनाने के लिए भड़कता है। ऐसे मामलो में ग्राहकों को पिछले कंपनी से ‘ररिफंड’ मांगने के लिए कहा जाता है और सभी हथकंडे भी बताये जाते है जिसमे सेबी से शिकायत और ज़रूरत पड़ने पर थानों में FIR तक करने की सलाह दी जाती है जिससे रिफंड से प्राप्त हुए पैसो को फिर नयी कंपनी में लगाया जाए और ये सिलसिला चलता रहता है।
इंदौर देश भर में हो रहा बदनाम :
दरअसल इंदौर अपने खाने पिने के साथ एडवाइजरी कंपनियों के लिए भी देश भर में मशहूर हो चूका है जिसमे चंद नाम छोड़ दे तोह तक़रीबन सभी के ख़िलाफ़ देश के विभिन्न थानों में और सेबी के स्कोर पोर्टल पर कई सौ की तादाद में शिकायते दर्ज हैं जिन्हे प्रशासन और सेबी पिछले एक साल से बहुत सख्ती से निपटने लगा है जिसका ताज़ा उदाहरण ये गिरफ्तारियां है, ऐसी कई कम्पनिया भी है जोह नाम और जगह बदल कर भी काम करती है और सेबी के नियमो को ताख पर रख कर निवेशकों से मनमाना पैसा वसूलती है जिसकी वजह से पूरे उद्योग और शहर को बदनाम होना पड़ता है।
लोकल थाने खा रहे मोटी मलाई :
कुछ एडवाइजरी संचालको ने नाम न छपने की शर्त पर बताया की ऐसे मामलो में जब FIR दर्ज हो जाती है तोह अक्सर सम्बंधित थाने का स्टाफ मामला सेटल करने के लिए मोटी रकम ऐंठता है जिससे ग्राहक को पैसा लौटने के साथ ही तक़रीबन उसका आधा उक्त थाने को देना पड़ता है , हाल ही में एक एडवाइजरी संचालक ने ऐसे मामले में साढ़े तीन लाख रिश्वत देने की बात बताई
सेबी के सभी नियमों का पालन भी मुश्किल :
असल में सेबी के लिए भी एडवाइजरी निवेश बाजार में एक नया उद्योग है जिसके नियम अथवा कायदे अभी हाल ही में उसने बनाये है , साल 2013 में सेबी द्वारा पहला इन्वेस्टमेंट एडवाइजर रेगुलेक्शन एक्ट लाया गया था जिसे उद्योग तक पहुंचने, समझाने में खुद सेबी को तक़रीबन चार साल लग गए और आज भी कई एडवाइजरी कंपनियों को इसकी पूरी जानकारी नहीं है।
इसके नियम ठीक उसी प्रकार से बनाये गए जैसे आदि के तुरंत बाद देश का पहले संविधान बनाया गया जिससे इन पिछले 70 सालों में ‘प्रॅक्टिकलिटी’ के आधार पर कई संशोधनों के द्वारा सुधारा जा रहा है जिसमे आज भी खामिया है इसीलिए इसकी नियामवली को हूबहू लागू करना भी बहुत आसान काम नहीं है और यही कारण है की अधिकांश एडवाइजरी इनका पूर्ण पालन करने में अक्सर चूक जाती है परन्तु नियम तो नियम है इनकी अवहेलना नहीं की जा सकती।
किराये के लइसेंस पर कई छोटी कम्पनिया :
इस उद्योग में ‘गंद ‘ मचानी वाली सबसे अधिक है वो कम्पनिया जिनके पास खुद का सेबी रजिस्टर्ड एडवाइजर का लइसेंस तक नहीं है ऐसे में ये कम्पनिया कई ऐसे इंडिविजुअल रजिस्टर्ड एडवाइजर के लइसेंस को मोटी रकम किराये में देकर उसका उपयोग करती है जिससे की ये प्रशासन और सेबी की नज़रो से बची रहती है और कोई भी गड़बड़ होने पर तुरंत अपना ठिकाना और सभी डिटेल्स बदल लेती है, ऐसे में लइसेंस होल्डर और पूरे उद्योग को इसकी कीमत चुकानी पड़ती है
निवेशक भी निवेश की तरह नहीं बल्कि जुए की तरह निवेश करना चाहते है :
ऐसे बड़े मामले होने की वजह ये भी है की शेयर मार्किट में खुद निवेशक ही अपना पैसा निवेश की तरह नहीं बल्कि जुए की तरह लगता है , कई दिन अच्छी कमाई होने के बाद वह और बड़े सौदे बिना किसी सेफ्टी जैसे की ‘स्टॉप लॉस ‘ के बिना लगाने लगता है जिससे सारी कमाई हुई रकम कुछ लम्हो में ही साफ हो जाती है और उस घाटे से उबरने के लिए वोह और ज़यादा जोखिम भरे सौदे करता है जो उसे और भी बड़े नुकसान की ओर खींचता है। ऐसी परस्तिथियो का फायदा कई कम्पनिया उठा कर उन्हें और भी बड़े ‘पैकेज ‘ लेने के लिए उकसाती है जिसका नतीजा हम सब जानते है , ऐसे में कंपनियों को चाहिए वो नियमति तरीको से अपने निवेशको को बाजार खतरों से अवगत करायें और ‘इन्वेस्टर एजुकेशन प्रोग्र्राम’ जैसे कार्यक्रम आयोजित करवाए।
भविष्य सिर्फ उन कंपनियों का जो पूरे नियम से चले :
एडवाइजरी में हालत से देख कर लगता है की सिर्फ वही कम्पनिया आगे चल पाएंगी जो पूरे नियमो का सख्ती से पालन करेंगी , अगर ऐसा होता है तोह ये सभी के लिए उचित होगा क्युकी ऐसे में सभी की जीत की सम्भावना प्रबल बानी रहेगी।
एडवाइजरी संघठन की आवश्यकता जो सेबी के साथ मिलकर काम करे :
समय का इशारा साफ है की एडवाइजरी उद्योग को सभी स्वच्छ छवि वाली कंपनियों अथवा संचालको को मिला कर एक संघठन बना लेना चाहिए जो की सेबी के साथ मिलकर खुद ऐसी एडवाइजरी का पर्दा फाश करे जिससे के पूरे शहर और उद्योग को बदनामी की काली स्याही से बचाया जा सके और हज़ारो युवाओ के रोज़कार के साथ भी किसी प्रकार का खिलवाड़ न होने पाए। अगर ऐसा होगा तोह निवेशक, सेबी और खुद कंपनी संचालक भी बे वजह की तकलीफो से बचे रहेंगे।
नज़र आ रहे हालातो से ये बात बहुत साफ हो गयी है की प्रशासन , साइबर सेल , सेबी और पुलिस ऐसे मामलो को बहुत गंभीरता से ले रही है परन्तु इसका दूसरा पहलू ये भी है की इंदौर में एडवाइजरी कम्पनिया रोज़गार का भी बड़ा साधन है ऐसे में सभी कंपनियों को नियमो का सख्ती से पालन करने के अलावा और कोई चारा नहीं बचा है वार्ना कही ऐसा न हो की एडवाइजरी प्रशासन और सरकार का सरदर्द बन जाये और परिणाम बहुत भयवाय हों।
वीडियो : सौजन्य से 21 न्यूज़ हैदराबाद