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‘एक दिन बिक जाएगा माटी के मोल’

कविता

 

मुझे भी गुरुर था;
तू भी मगरूर था !
अब तू शांत और निःशब्द है;
मैं भी हांफने लगा हूँ !
लगे थे कई पैताम तेरे भी,
मेरे फूटे सिलेंडर और टूटी चैन की तरह!
तू पालनहार था सन्तानो को तरा दिया;
और मैंने हर मुसाफिर का गला तर किया !
जलदाय विभाग की तरह,
आते है तेरे बेटे दीपक जलाने कभी-2;
पर अब वो जवानी,रवानी
पहले मैं, पहले मैं होड़ करती भीड़
फुसफुसाते,ठिठोली करते बच्चो औरतो के झुंड
न तुझे घेरे है,न मुझे,,,!!

एक दिन बिक जाएगा माटी के मोल
जग में रह जाएंगे प्यारे तेरे बोल,,,,,

लेखक :
मोहनलाल मीणा, अधीक्षण अभियंता, जलदाय विभाग कोटा

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