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क्या पत्रकार कोरोना योद्धा नहीं ? मुंबई में 53 कोरोना पत्रकारों के परिवारों का क्या ? संक्रमित अस्पतालों से लेकर संक्रमित सील इलाकों तक अल सुबह से देर रात तक बेहद कम मानदेय/वेतन पर जान की बाज़ी लगा जनता तक खबरें पहुंचाने वाले पत्रकारों के लिए ज़मीनी स्तर पर क्या ?

देश में कोरोना महामारी में पुलिस , सफाई कर्मी अथवा डॉक्टरों के साथ पत्रकारों की भूमिका भी उतनी ही महत्वपूर्ण है जितनी बाकी के योद्धाओं की।

केवल नाम मात्र की तनख्वाह के साथ सिर्फ अपना कर्तव्य निभाने के लिए देश के लाखों पत्रकार अल सुबह से लेकर देर रात तक देश की सड़कों पर खबरें बनाने के लिए अपनी जान जोखिम में लेकर घूमते रहते हैं, चाहे सबसे संक्रमित अस्पताल हो या सील किए हुए सबसे संक्रमित इलाके इन सभी क्षेत्रों से खबरें बनाने के लिए बेहद सख्त परिस्थितियों में बिना किसी सहारे के दिन रात मेहनत करते उन पत्रकारों का भी परिवार है, जहां बीवी बच्चे अथवा मां बाप सुबह उनके घर से निकलने के बाद से ही देर रात तक उनके घर आने के बाद तक बेचैन रहते हैं लेकिन सवाल ये है कि क्या कोई भी प्रदेश सरकार इन पत्रकारों के लिए जमीनी स्तर पर क्या सचमुच कुछ कर रही है और यदि कर रही है तो कितने पत्रकारों को उसका लाभ मिलेगा और कैसे?

जैसे ही खबर आती है यह अफसर या यह डॉक्टर या ये क्षेत्र संक्रमित हुए वैसे ही हर पत्रकार तुरंत चिंतित होता है और यह सोचने लगता है कि वह उस क्षेत्र में या उस व्यक्ति से आखरी बार कब मिला था और भगवान से सिर्फ यही प्रार्थना करता है कि वह उसे इस घातक बीमारी से दूर रखे।

लेकिन करें तो करें क्या, ना ही कोई रोटेशन है और ना ही कोई ऐसी व्यवस्था जीसमें एक पत्रकार को अपनी ड्यूटी से आराम मिल सके क्योंकि पत्रकारिता ड्यूटी ही नहीं कुछ जुनूनी पेशा है जहां एक जुनूनी पत्रकार एक अच्छी खबर के लिए वास्तव में अपनी जान को दांव पर लगा देता है लेकिन इस वक्त यहां पूरे देश की इकोनॉमी ठप पड़ी है, पत्रकारों को भी अपने परिवार की चिंता है, ऐसे में राज्य सरकार और केंद्र सरकार की तरफ से भी पत्रकारों की नजरें गड़ी हुई है कि यदि उन्हें अपना धर्म निभाने में कुछ हो गया तो उनके और उनके परिवार के लिए कौन सी सरकार जमीनी स्तर पर क्या करेगी और जो योजनाएं सरकार निकालते भी है उसका क्रियान्वयन कितना सरल होगा और किस प्रकार उनके परिवार को उसे सहायता मिल जाएगी।

इस कठिन समय में हर परिस्थिति में अपना धर्म निभाने वाले पत्रकारों के लिए सरकार को नहीं भूलना चाहिए की सभी पत्रकार अपना धर्म निभाने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं फिर चाहे वह फील्ड पर निकले हुए फील्ड रिपोर्टर हों या डेस्क पर बैठे हुई एडिटिंग टीम के पत्रकार, इसीलिए जब तक प्रशासन व सरकार पत्रकारों को निश्चित नहीं करेंगी तब तक पत्रकारों की चिंता बढ़ती रहेंगी, इसीलिए राज्य सरकार व केंद्र सरकारों को ऐसे सभी पत्रकारों व उनके परिवारों के लिए स्वास्थ्य बीमा के साथ एक लाइफ इंश्योरेंस अथवा कोरोना काल तक के लिए पुलिस व डॉक्टरों को दी जाने वाली ऐसोलेशन, रोज़ होने वाली मेडिकल स्क्रीनिंग की भी व्यवस्था करनी चाहिए ताकि विभिन्न मीडिया संस्थानों से जुड़े हुए पत्रकार बिना अपने परिवार की चिंता किए हुए कोरोना काल में अपने फर्ज को निर्वाह करते रहें।

*डॉ सौरभ माथुर, संपादक, भारती न्यूज़ वे हमारी ज़िन्दगी प्रिंट*

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