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Madhya Pradeshइंदौर

‘ गोकुलदास हत्याकांड ‘ ! जितना ऊपर उससे अधिक नीचे हो सकता है पूरा मामला, अब ये सरकार और प्रशासन पर निर्भर की इसकी जांच कैसे हो

विशेष, संपादक डॉ सौरभ माथुर की कलम से

 

इंदौर। शहर में सामने गोकुलदास अस्पताल के पूरे मामले में एक बहुत बड़ा प्रश्न पूरे प्रदेश पर खड़ा कर दिया है की क्या ये महज गलती है या हत्याकांड है ?

जिस तरह एक ही दिन में एक के बाद एक मरीजों की जान चली गई और विशेष रूप से पौने 2 घंटे में 3 मरीज अपनी जान से हाथ धो बैठे एक बहुत बड़ा सवाल खड़ा होना लाजमी है कि क्या यह लापरवाही है या कोई और साजिश?

जैसा कि पूरे मामले में अभी तक सामने आया की मृत मरीजों में से एक मरीज़ ऐसी भी थी जो मात्र आधे घंटे  पहले ही अस्पताल में चलती फिरती गई थी और पूरी स्वस्थ नजर आ रही थी उसकी भी जान संदिग्ध परिस्थितियों में चली गई तो क्या यह अपने आप को ग्रीन जोन में लाने के लिए अस्पताल की कोई साजिश थी या महज एक इत्तफाक था?

यह एक बड़ा सवाल उन सभी अस्पतालों और प्राइवेट क्लीनिक के लिए भी है  जो सरकार में विभिन्न प्रकार के हलफनामे देते हैं अथवा प्रदेश व देश राज्य सरकार की विभिन्न योजनाओं का पूरा लाभ उठाने में पीछे नहीं रहते तो फिर मुश्किल भरे समय में क्यों अपना कर्तव्य न निभाने के बहाने ढूंढ रहे हैं ?

मोटी कमाई खटाई में पड़ जाती अगर बहुत दिनों तक ग्रीन ज़ोन में नहीं आएगा अस्पताल  :

असल में कोई भी अस्पताल जो प्राइवेट हो और कोरोना  के मरीजों का इलाज कर रहा हो उसे ग्रीन जोन में जाने की जल्दी इसलिए है क्योंकि आने वाले समय में जब अस्पताल में कोई और अन्य रोगों का इलाज कराने के लिए जब रोगी  जाएंगे तब उन्हें यह डर है क्योंकि वह अस्पताल कोरोना  का इलाज कर चुका है तो कहीं  और संक्रमण न  फैल  जाए, यदि ऐसा होता है तो अस्पताल को भारी नुकसान होने की संभावना है हालांकि कोई भी अस्पताल जब रेड जोन से ग्रीन जोन में जाता है तब उसमें पूरी तरह से सैनिटाइजेशन किया जाना अनिवार्य होता है जिसके बाद उस सभी प्रकार के संक्रमण के खतरे से मुक्त हो जाए ठीक उसी बात के लिए जल्दी मचा कर अस्पताल ने इस हत्याकांड को अंजाम दिया लगता है क्योंकि हर पेशेंट से लाखों ऐंठने  की स्कीम फेल  होती दिखाई दे रही थी।

कुछ साल पहले इसी अस्पताल में डिलीवरी कराने आई महिले के पेट में तौलीया छोड़ दिया था 

साल 2014 में खातीवाला टैंक निवासी  फरीदा का गोकुलदास अस्पताल में सिजेरियन डिलीवरी के लिए ऑपरेशन किया गया था जिसके बाद से ही उसके पेट में दर्द रहने लगा लेकिन उसने आई गई बात कर दी परंतु जब स्थिति बिगड़ने लगी तो तकरीबन एक  साल बाद  फरीदा ने वापस चेकअप कराया तो डॉक्टर ने उसका ऑपरेशन किया और ऑपरेशन करते वक्त उसमें से छोटा तौलिया निकाला गया, उस समय पूरे बोहरा समाज के लोगों ने गोकुलदास अस्पताल जाकर जबरदस्त धरना प्रदर्शन किया था.

बड़ा सवाल यह है कि क्या गोकुलदास अस्पताल का लाइसेंस टेंपरेरी निरस्त करके प्रशासन ने कार्यवाही की इतिश्री कर ली या फिर सच में इस पूरे मामले की जांच करके पूरे प्रदेश में कोई बड़ा उदाहरण पेश किया जाएगा ? यह सवाल इसलिए है की गोकुलदास अस्पताल के मालिक शहर और प्रदेश के बड़े प्रभावशाली लोगों में से आते हैं जिनके तकरीबन सभी राजनीतिक पार्टियों से संबंध रहे हैं इसीलिए कहीं ऐसा ना हो की आंखें खुलने की वजह प्रशासन और सरकार आंखें बंद कर ले।

 

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