प्रजातंत्र में चुने हुए जनप्रतिनिधियों और उनके नेताओं ने उनके आकाओं ने प्रजातंत्र को मजाक बना दिया है।
राजनीतिक पार्टियां और उनके आलाकमान चुने हुए जनप्रतिनिधियों को बंधुआ मजदूर की तरह समझते हैं।
यह किसी पार्टी के लिए न होकर जनता के द्वारा जनता के लिए चुने गए हैं जनता ने उनको चुना है अपने क्षेत्र की समस्याओं को हल करने के लिए ।
उन्हें अधिकार किसने दिया कि उनका आका उनका नेता दल बदलता है तो वह भी इस्तीफ दे देते हैं क्यो? किसलिए ?
क्या इस्तीफा देने के पहले उन्होंने जनता से राय मशवरा लिया । जिस तरह चुनाव लड़ने के दौरान एक एक मतदाता के समक्ष जाकर हाथ जोड़ कर अपनी पार्टी व चुनाव चिन्ह व सविधान का हवाला दे क्षेत्र में विकास का वास्ता देकर वोट मांगे थे।
इतने दिनों से क्यों चुप है कि उनके क्षेत्र में मंत्री और मुख्यमंत्री जी या अधिकारी विकास नहीं करा रहे हैं वो क्षेत्रीय समस्याओं का हल नहीं करा पा रहे हैं आज इनके आज आका ने बोला तो उनके मुंह में जुबान आ गई।
क्या उन्होने अपने विधानसभा क्षेत्र के मतदाताओ को बताया कि वो क्षेत्र की समस्याएं इसलिए नही हल कर पा रहे है उनकी पार्टी या मंत्री मुख्यमंत्री उनकी सुन न्ही रहे है। इस वजह उनके नेता ने दल बदला और वे चल दिए ।
यह मध्यप्रदेश हीं पूरे देश में हर राज्य में केंद्र में जब चाहे तब चलता रहता है किसने अधिकार दिया इनको यदि एक मतदाता कुछ रुपए लेकर वोट देता है तो उसके बोला जाता है बिक गया है मतदाता ।
अब इन जनप्रतिनिधियों ने जिसमें कुछ मंत्री भी हैं ने क्या ? क्यो ? दिया पद से त्यागपत्र ?
दल बदलने का कारण बताया कि हमारी उपेक्षा हमारे क्षेत्र की उपेक्षा कार्य ना होना और हमारे आका की उपेक्षा उपेक्षा ।
उपेक्षा या सम्मान अपमान आपस में पार्टियों और उनके प्रमुखों संगठन के आपस की बात है ।
इस तरह इस्तीफा देकर आका के नाम पर दल के नाम पर जनता को सरेआम मझधार में छोड़ दिया अब क्या होगा उस क्षेत्र का जहां से उसे जनप्रतिनिधि चुना गया था उसने इस्तीफा दिया किस से राय लेकर व किस अधिकार से।
क्या जनता से सुमारी की ।
अब वह क्षेत्र जनप्रतिनिधि विहीन हो गया। क्षेत्र की जनता क्यों भूगते।
उसकी क्या गलती है ?
क्या चुने जनप्रतिनिधि ने चुनाव के दौरान बोला था कि मै पार्टी से नहीं बधा हू मै अपने आका का प्रत्यासी हू।
क्या ? भारतीय लोकतंत्र में प्रजातंत्र में जो विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र के लाता है जो विधानसभा लोकसभा राज्यसभा कहलाता है वहा पर सैकड़ो बिल सुधार लाए जाते हैं क्या एक ऐसा भी चुनाव सुधार बिल लाया जाएगा कि चुना हुआ जनप्रतिनिधि पार्टी या गुट या व्यक्ति विशेष का ना होकर क्षेत्र की जनता का प्रतिनिधि है वह अपनी व अपने नेता या आका की मर्जी से इस्तीफा नही दे सकता।उसके लिये उसे जनता के बीच जाना ही होगा। यदि उसे पद त्यागना जरुरी है तो जिसे उसने हराया है जो दुसरे नम्बर पर रहा है वह स्वतः ही निर्वाचित समझा जाएगा एक एसा बिल लाया जाना अवश्य है प्रजातंत्र को जिन्दा रखने के लिऐ।
पप्पू अग्निहोत्री