रावण की पूजा नहीं करने पर जल गया था पूरा गाँव, ये था पूरा मामला.
“रावण की पूजा नही की तो जल गया था पूरा गाँव”
इंदौर(जेपी नागर)-दशहरा पर देशभर में रावण दहन की परंपरा है, मगर देपालपुर से 30 किमी दूर बड़नगर रोड पर स्थित ग्राम चिकली में इस दिन दशानन की खासतौर पर पूजा की जाती है। पूजन में आसपास के कई गांवों के लोग भी शामिल होते हैं। दरअसल मान्यता है कि एक बार रावण की पूजा न करने पर पूरा गांव जल गया था। इसके बाद से लंकेश की पूजा में कभी कोई चूक नहीं की गई।
गांव के 80 वर्षीय दयाराम पटेल और 60 वर्षीय मांगीलाल सूर्यवंशी बताते हैं कि यह परंपरा संभवत करीब 500 साल से चली आ रही है। उनके दादा कहते थे कि यह परंपरा उनके परदादा के पहले से जारी है। बुजुर्ग बताते हैं कि एक बार रावण की पूजा नहीं करने पर पूरा चिकली गांव जलकर राख हो गया था। गांव में जब भी खुदाई होती है तो आज भी उसमें कोयला निकलता है। इस कारण अनिष्ट के भय के चलते ग्रामीण हर साल रावण की विधिवत पूजा करते हैं।
10 फीट ऊंची है प्रतिमा, पुजारी रोज कराते हैं स्नान
गांव में रावण की 10 फीट ऊंची सीमेंट से बनी प्रतिमा स्थापित है। ग्रामीणों के अनुसार, पहले मिट्टी से बनी प्रतिमा स्थापित थी। तीन दशक पहले सीमेंट की प्रतिमा बनवाई गई। पुजारी कैलाश सोलंकी रोजाना रावण को स्नान कराते हैं। इसके बाद पूजा-अर्चना का नित्य नियम है। जब बारिश नहीं होती है तो ग्रामीण यहां उत्तम वर्षा की कामना को लेकर विशेष पूजा-अर्चना भी करते हैं। वर्तमान में ग्राम चिकली की आबादी 3 हजार है।
जब कोई नहीं मनाता, तब यहां मनता है दशहरा
चैत्र मास की दशमी तिथि पर कहीं भी रावण दहन नहीं होता, लेकिन इस गांव में इस दिन दशहरा पर्व धूमधाम से मनाया जाता है और मेला लगाया जाता है। रात्रि में ग्रामीणों द्वारा गांव के प्रमुख मार्गों से भगवान राम, लक्ष्मण, सीता, हनुमान की सवारी निकाली जाती है। पश्चात रामलीला के चलते हनुमान द्वारा लंका जलाई जाती है और भगवान राम द्वारा रावण की मूर्ति पर लगाए हुए गोबर के मुखोटे को तीर से जमीन पर गिरा दिया जाता है। मुखोटे के जमीन पर गिराने को लोग रावण का वध मान दशहरा पर्व मनाते हैं।